ABOUT HINDI POETRY

About Hindi poetry

About Hindi poetry

Blog Article

मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।५४।

छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,

सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला

जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।

हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,

किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।९१।

इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,

सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती website यदि साकीबाला,

चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,

गलियारे बदल जाते पर ये साए मुझे ढूंढ ही लेते

मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ

Report this page